छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की तरफ से राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) की तुलना नक्सलियों से करने के दिए बयान पर विवाद पैदा हो गया है. इसके बाद भोपाल से भारतीय जनता पार्टी की सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने सीएम भूपेश बघेल पर पलटवार किया है. प्रज्ञा ठाकुर ने बुधवार को कहा कि आज हिन्दू और देश आरएसएस के कारण ही सुरक्षित है.
कांग्रेस ने कहा- देश का अपमान
इधर, कांग्रेस ने बीजेपी सांसद के इस बयान को भारतीय सेना का अपमान करार दिया है. कांग्रेस नेता के.के. मिश्रा ने ट्वीट करते हुए कहा- “बकौल प्रज्ञासिंह ठाकुर देश सुरक्षित है तो RSS के कारण! क्या हमारी सीमा पर सभी धर्मों की रेजिमेंट के बहादुर व शहीद सैनिक बुज़दिल व गद्दार हैं? यह पूछने की हिम्मत है आपमें कि 96 सालों में संघ का पंजीयन,बायलॉज,सदस्यता सूची कहाँ है, डर है कहीं आप जैसा हश्र अन्य अतिवादियों का न हो? ”
मोहन भागवत बोले- वीर सावरकर की छवि खराब करने की कोशिश
इससे पहले, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने वीर सावकर को लेकर कहा कि इस देश में सही मायने में वे एक महान व्यक्ति थे, जिन्होंने राष्ट्रीयता को सर्वोपरि रखा और उन्होंने हिंदुत्व को ही राष्ट्रीयता माना, लेकिन शुरू से ही वीर सावरकर की छवि को खराब करने का प्रयास किया गया. साथ ही उन्होंने कहा कि इस देश में वीर सावरकर के बारे में लोगों के पास कम जानकारी है.
रूपा प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई किताब के विमोचन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख ने कहा, सावरकर जी ने मानवता का ही प्रतिपादन किया है. उन्होंने कभी हिंदू-मुसलमान के बीच कोई अंतर नहीं देखा, लेकिन जिन शक्तियों ने देश में हिंदू-मुसलमान के बीच धर्म के आधार पर भेदभाव उत्पन्न करने की कोशिश की उन्हें जवाब देने के लिए उन्होंने कहा कि हिंदुत्व ही राष्ट्रीयता है. इसका मतलब ये नहीं कि वो मुसलमानों को अलग समझते थे.
भागवत ने कहा, विभाजन के बाद पाकिस्तान गए मुसलमानों का भी आदर नहीं है, लेकिन भारत में ऐसा नहीं है. सावरकर ने कहा था कि हमारे देश में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक के बीच कोई भी अंतर नहीं रहेगा. ये थी सावरकर की सोच. कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा कि सावरकर कहते थे कि राष्ट्रनीति के पीछे सुरक्षानीति को होना चाहिए. अब 2014 के बाद पहली बार लग रहा है कि सुरक्षा नीति राष्ट्रनीति के पीछे चल रही है. सावरकर जी शुद्व वैज्ञानिक पद्धति के व्यक्ति थे. कभी भी आंख मूंदकर कोई फैसला नहीं लेते थे, न ही बात मानते थे.
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