नई दिल्ली I भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने की बात कहकर अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी अब अपने अस्तित्व की लड़ाई में उन लोगों से भी हाथ मिलाने को तैयार हो गई है, जिनकी वो कभी धुर विरोधी थी. पिछले 6 महीनों में हालात काफी बदल गया है. लगभग सभी विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने वाली आम आदमी पार्टी अब उन्हीं नेताओं से माफी मांगने लगी है. इससे ऐसा लगता है कि राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई में आम आदमी पार्टी को यू-टर्न लेने से भी गुरेज नहीं है.

सूत्रों के अनुसार, हाल ही में आम आदमी पार्टी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस के सामने मिलकर चुनाव लड़ने का प्रस्ताव रखा. खास बात ये है कि इस प्रस्ताव के कुछ दिन पहले ही अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली कांग्रेस के अध्यक्ष अजय माकन के बेटे के बोर्ड परीक्षा में प्रदर्शन की प्रशंसा की. इसके अलावा शीला दीक्षित ने भी एक इंटरव्यू में कहा कि राजनीति संभावनाओं का खेल है.

शीला दीक्षित का इंटरव्यू ठीक उसी दिन आया, जिस दिन अजय माकन सीसीटीवी खरीद के मामले में कथित भ्रष्टाचार को लेकर आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू करने वाले थे. इससे माना जा रहा है कि एक तरफ जहां कांग्रेस केजरीवाल के खिलाफ विरोध कर रही है, वहीं दूसरी ओर संभावनाओं की भी बात की जा रही है. अरविंद केजरीवाल भी पिछली सभी बातों को भूलकर कांग्रेस से हाथ मिलाने को बेताब नज़र आते हैं.

आम आदमी पार्टी के इस प्रस्ताव को दो तरीके से देखा जा सकता है. छोटे स्तर पर और बड़े स्तर पर. बड़े स्तर पर यानी राष्ट्रीय स्तर पर बात करें तो आम आदमी पार्टी बीजेपी के खिलाफ बनने वाले महागठबंधन में अपनी जगह तलाश रही है. इस मामले में ममता बनर्जी आम आदमी पार्टी का साथ दे सकती है, क्योंकि पश्चिम बंगाल में टीएमसी की मुख्य विरोधी पार्टी लेफ्ट, कांग्रेस के सहयोगी की तरह काम कर रही है. जाहिर है महागठबंधन में अपनी स्थिति को मज़बूत करने के लिए ममता बनर्जी को भी कुछ लोग अपने पक्ष में चाहिए.

वैसे दिल्ली में 'कांग्रेस-आप' का गठबंधन माकन के विरोधी खेमें के लोगों को फायदा पहुंचाएगा, क्योंकि आप ने कथित तौर पर 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस को उन्हीं सीटों का प्रस्ताव दिया है, जिससे माकन के विरोधी लोगों को लोकसभा में एंट्री मिल सकती है.
हालांकि ये प्रस्ताव काफी चौंकाने वाला है, क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार-विरोधी मुहिम चलाकर ही आम आदमी पार्टी की नींव रखी थी. तो फिर अब ऐसा क्या हो गया जिसने अरविंद केजरीवाल का हृदय परिवर्तन कर दिया? इसका उत्तर शायद इस बात में छिपा है कि आप का वोट शेयर लगातार घट रहा है.
दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में आप को 32.9 फीसदी और कांग्रेस को 15.2 फीसदी वोट मिले थे. लेकिन 2017 के नगर निगम के चुनाव में आप का वोट प्रतिशत घटकर 26.21 फीसदी रह गया जबकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़कर 21.21 फीसदी हो गया.
वहीं इस दौरान बीजेपी की स्थिति मज़बूत होती हुई नज़र आई है. 1998 से लेकर अब तक बीजेपी का वोट प्रतिशत 32 फीसदी से बढ़कर 36 फीसदी हो गया है. हालांकि इस दौरान बीजेपी की जीत का एक बड़ा कारण विपक्ष के वोट का बंटवारा रहा.

हाल ही में आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा अयोग्य घोषित किए जाने के खिलाफ चुनाव आयोग द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील न करने पर भी दिल्ली कांग्रेस हो-हल्ला मचा रही है. इसे वो दिल्ली में अपनी साख को फिर से मज़बूत करने के हथियार की तरह देख रही है. उनके हिसाब से यह एक बड़ा मौका था जिससे कांग्रेस फिर से उभर कर दिल्ली मे आ सकती थी.

अगर आप के ये विधायक अयोग्य करार दे दिए जाते तो इस पर फिर से चुनाव होता. इन 20 सीटों में से 14 सीटे वो हैं जिन पर पारंपरिक रूप से कांग्रेस की पकड़ मज़बूत रही है. इन सीटों पर मुसलमान और दलितों की संख्या काफी है, लेकिन 2015 के चुनाव में ये लोग खिसककर आम आदमी पार्टी के साथ चले गए थे.




इस ट्रेंड के अनुसार दिल्ली में एलायंस करके कांग्रेस को बहुत कुछ नहीं मिलने वाला है और राष्ट्रीय स्तर पर भी दिल्ली के बाहर पिछले कुछ विधानसभा के परिणाम बताते हैं कि आप लगातार खत्म होने की तरफ बढ़ रही है.
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