केरल में निपाह वायरस से मरने वालों के लगातार बढ़ते मामलों के चलते इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड सरकार एक पत्र लिखा है. इस पत्र में क्वीन्सलैंड सरकार से वहां बनाए गए एंटीबॉडी की मांग की है ताकि भारत में इसका प्रयोग निपाह वायरस की रोकथाम के लिए किया जा सके.

इस एंटीबॉडी को अभी तक टेस्ट नहीं किया गया है. आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने कहा, "हमने उनसे कहा है कि वो हमें मोनोक्लोनल एंडीबॉडी उपलब्ध करा दें ताकि भारत में हम टेस्ट कर सकें कि ये निपाह वायरस को न्यूट्रलाइज़ कर पा रहा है कि नहीं. ऑस्ट्रेलिया में इसका प्रयोग अभी तक इन विट्रो (शरीर के बाहर आर्टिफिशियल कंडीशन में) किया गया है और इसे सफल पाया गया."

आईसीएमआर भारत में बॉयोमेडिकल रिसर्च के फॉर्मुलेशन, को-ऑर्डिनेशन व प्रमोशन के लिए शीर्ष संस्था है. डॉ भार्गव ने कहा, "हम लोग इस पर विचार कर रहे हैं कि इसे कैसे रेग्युलेट किया जाए और इसके प्रयोग का तरीका क्या हो. ऑस्ट्रेलिया इसे देने के लिए तैयार है क्योंकि वो इस दवा के मानवों पर प्रयोग का डाटा कलेक्ट करेगा. हालांकि ये नहीं पता कि ये कितना प्रभावशाली होगा क्योंकि निपाह वायरस की मृत्यु-दर काफी ज़्यादा है."

नेशनल वेक्टर बॉरन डिज़ीज कंट्रोल प्रोग्राम के अनुसार ये दवा इन विट्रो प्रयोग में वायरस को मारने में सफल रही है लेकिन मनुष्यों में इसका क्या प्रभाव होगा कहा नहीं जा सकता.



बता दें कि केरल में अभी तक 12 मौतें निपाह वायरस की वजह से हो चुकी हैं. इनमें से 9 मौतें कोझीकोड और 3 मौतें मलप्पुरम जिले में हुई हैं. रिपोर्ट्स के अुनसार पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश में एक स्कूल में कुछ मरे हुए चमगादड़ मिले जिसके बाद राज्य पूरी तरह से एलर्ट हो गया और जांच के लिए सैंपल पुणे भेज दिया गया.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि अभी तक कोझीकोड से 18 और मलप्पुरम से 22 लोगों को निपाह वायरस होने के संदेह पर कोझीकोड मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया है.

अभी तक NiV के उपचार की कोई भी दवा नहीं है. निपाह वायरस मनुष्यों के व जानवरों दोनों से फैलता है. इंफेक्टेड चमगादड़ के लार या यूरीन मिले हुए खाने को खाने से इंफेक्शन फैल सकता है.

इसके पहले निपाह वायरस के मामले 2001 में सिलीगुड़ी और 2007 में नदिया जिले से रिपोर्ट किए गए थे.
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