नई दिल्ली I कर्नाटक में कांग्रेस फूंक-फूंक कर कदम आगे बढ़ा रही है. पार्टी जानती है कि चुनाव आते ही बीजेपी हर बार एक ही सियासी रणनीति के साथ मैदान में उतरती है और कांग्रेस उसकी मजबूत काट नहीं ढूंढ पाती. कांग्रेस की मुश्किल ये है कि जहां उसका बीजेपी से सीधा मुकाबला होता है, वो पिछड़ जाती है. लेकिन कई जगह देखा गया है कि जहां बीजेपी का मुकाबला मजबूत क्षेत्रीय क्षत्रपों के साथ होता है तो वो पिछड़ जाती है.
कांग्रेस को लगता है कि जिन राज्यों में मुस्लिमों की थोड़ी भी आबादी है, वहां बीजेपी विरोधी दलों को घेरने के लिए एक ही अंदाज में लामबंदी करती है. किसी ना किसी मुद्दे को हवा दी जाती है और फिर कभी पाकिस्तान का नाम लेकर, कभी मुस्लिम तुष्टीकरण का नाम लेकर विरोधी दलों के खिलाफ हवा बनाने की कोशिश करती है.
कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित दिल्ली की मिसाल देते हुए कहते हैं कि वहां चुनाव के वक्त बीजेपी ने शाही इमाम को इसी रणनीति के तहत आम आदमी पार्टी के साथ जोड़ा था लेकिन केजरीवाल उस वक्त समझदार निकले. इसी तरह बिहार में भी बीजेपी ने ऐसी ही कोशिश की थी. यहां तक कहा गया कि महागठबंधन जीता तो पटाखे पाकिस्तान में फूटेंगे. लेकिन उस वक्त लालू और नीतीश की जोड़ी ने कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी को जीतने नहीं दिया.
इसी संदर्भ में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष राजबब्बर का कहना है कि यूपी में अखिलेश-कांग्रेस का गठजोड़ और मायावती अलग-अलग लड़े. इसका फायदा तो बीजेपी को मिला ही. साथ ही बीजेपी ने दिवाली-ईद की बिजली और कब्रिस्तान- श्मशान जैसे भी खूब बयान दिए. मोदी और अमित शाह ने पूरी कोशिश करके चुनाव को सांप्रदायिक रंग से सराबोर करने का काम किया.
ये सब देखते हुए ही कांग्रेस ने गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान पहले से सावधानी बरती. राहुल गुजरात प्रचार के दौरान मंदिर-मंदिर गये, खुद को शिवभक्त, जनेऊधारी हिन्दू ब्राह्मण बताया. दूसरी तरफ अंदरखाने पार्टी ने मुस्लिमों के बीच अभियान चलाया कि वो उकसावे पर प्रतिक्रिया ना दें और मतदान करने शांति से जाएं.
गुजरात में बीजेपी की ओर से पूर्व पीएम मनमोहन सिंह पर पाकिस्तानी दूतावास के लोगों के साथ मिलकर साज़िश का आरोप तक लगाया गया. जबकि गुजरात के नतीजे आने के बाद राज्यसभा में हंगामा होने पर अरुण जेटली ने ये कहकर पल्ला झाड़ लिया कि किसी को मनमोहन सिंह की विश्वसनीयता पर कोई शक नहीं. हालांकि गुजरात के नतीजों ने साबित किया कि कांग्रेस की कोशिश बेहतर रही, लेकिन वो सरकार बनाने में फिर भी कामयाब नहीं हो पाई.
ऐसे में अब कांग्रेस गुजरात के चुनाव से सबक लेकर आगे बढ़ रही है. कांग्रेस के मुताबिक, पिछली रणनीति के तहत ही जिन्ना और पाकिस्तान के करीब बताना शुरू हुआ. हाल में अमित शाह ने पाकिस्तान और कांग्रेस की सोच को एक दूसरे के करीब बता दिया.
गुजरात चुनाव से सबक
इसी से निपटने के लिए कांग्रेस गुजरात की रणनीति को और प्रभावी तरीके से कर्नाटक में अपना रही है. राहुल का मठ- मंदिर दर्शन जारी है. लिंगायत कार्ड भी इसी लिहाज से सीएम सिद्दारमैया ने खेल डाला. रामलीला मैदान की रैली में राहुल ने कर्नाटक चुनाव के बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा का ऐलान कर दिया. अब आखिरी वक़्त में कार्यकर्ताओं को फिर से बीजेपी की रणनीति को मतदाताओं के सामने एक्सपोज करने के लिए अलग से निर्देश दिए जा रहे हैं.
पार्टी सूत्रों का मानना है कि, गुजरात की तुलना में वोट पड़ने तक कार्यकर्ताओं को जागरूक रहने को कहा गया है. गुजरात में ये देखा गया कि मुस्लिम समाज का एक वर्ग वोट देने को लेकर उदासीन रहा, इसलिए कर्नाटक में बीजेपी से मुकाबले में अल्पसंख्यक शान्ति के साथ एकमुश्त मतदान करें, इसकी भी गुपचुप कोशिशें की जा रही हैं.
कुल मिलाकर कांग्रेस को लगता है कि गुजरात में वो बीजेपी की इसी रणनीति से लड़ते हुए जीत की दहलीज तक पहुंच गई थी. और कर्नाटक में सतर्कता के साथ आगे बढ़ती रही तो जीत की दहलीज को पार भी कर लेगी. खैर ये तो कोशिशें हैं वो हर पार्टी ही करती है. देखना दिलचस्प होगा कि 15 मई को नतीजे आएंगे तो कर्नाटक की जनता की ओर से जीत का सेहरा किसके सिर पर बंधा दिखेगा.
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