सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आधार डेटा के गलत इस्तेमाल की आशंका जाहिर की है. कोर्ट ने कैम्ब्रिज एनालिटिका डेटा चोरी मामले का जिक्र करते हुए कहा कि नागरिकों की निजी जानकारी का दुरुपयोग कर चुनाव पर असर डाला जा सकता है.
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ आधार की अनिवार्यता और 2016 के कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई कर रही है. पीठ ने कैम्ब्रिज एनालिटका विवाद का जिक्र करते हुए कहा कि ये ‘आशंकाएं काल्पनिक’ नहीं हैं. उन्होंने कहा कि डेटा सुरक्षा संबंधी मजबूत कानून नहीं होने की स्थिति में जानकारी के दुरुपयोग का मुद्दा प्रासंगिक हो जाता है.
पीठ ने कहा, 'वास्तविक आशंका इस बात को लेकर है कि डेटा एनालिसिस के जरिये चुनावों को प्रभावित किया जा रहा है. ये समस्याएं उस दुनिया की झलक हैं, जहां हम रहते हैं.' इस संविधान पीठ में जस्टिस एके सीकरी, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस अशोक भूषण भी शामिल हैं.
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) और गुजरात सरकार के वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने कहा, 'इसकी तुलना कैम्ब्रिज एनालिटिका से मत कीजिए. UIDAI के पास फेसबुक, गूगल की तरह उपयोगकर्ताओं के विवरण का एनालिसिस करने वाला एल्गोरिथम नहीं है.'
द्विवेदी ने कहा कि इसके अलावा आधार अधिनियम आंकड़ों के किसी तरह के विश्लेषण की अनुमति नहीं देता है. यूआईडीएआई के पास सिर्फ ‘मिलान में सक्षम एल्गोरिथम है’ जो आधार की पुष्टि का आग्रह प्राप्त होने पर केवल ‘हां’ या ‘न’ में जवाब देता है.
निजी संस्थाओं को आधार प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल की इजाजत क्यों?
पीठ ने वकील से पूछा कि अधिकारी निजी संस्थाओं को विभिन्न कार्यों के लिए आधार प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल की इजाजत क्यों दे रहे हैं. कोर्ट ने इससे जुड़े वैधानिक प्रावधान का भी उल्लेख किया.
इस पर द्विवेदी ने जवाब दिया कि कानून के तहत किसी ‘चायवाला’ या ‘पानवाला’ को डेटा के मिलान के आग्रह की अनुमति नहीं दी गई है. यह सीमित प्रक्रिया है. उन्होंने कहा कि यूआईडीएआई किसी को भी अनुरोध करने वाली संस्था के रूप में तब तक मान्यता नहीं दे सकता है, जब तक वह इस बात से संतुष्ट न हो जाए कि उस संस्था को डेटा की प्रमाणिकता की जांच की आवश्यकता है.
द्विवेदी ने रक्षा क्षेत्र में रिलायंस जैसी निजी कंपनियों के प्रवेश का हवाला देते हुए कहा कि कुछ समय में अदालत को सरकारी क्षेत्र में निजी कंपनियों के काम करने के पहलू पर भी निर्णय करना होगा.
द्विवेदी ने उन आरोपों का भी जवाब दिया जिनमें कहा जा रहा है कि लोगों को जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर की पहल की तर्ज पर कुछ अंकों वाली पहचान दी जा रही है. उन्होंने कहा, 'हिटलर ने यहूदियों, ईसाइयों आदि की पहचान के लिए लोगों की गिनती की थी. यहां हम नागरिकों से जाति, पंथ और संप्रदाय की जानकारी नहीं मांगते हैं.'
द्विवेदी ने कहा कि संख्या के इतिहास की शुरुआत भारत से होती हैं और संख्याएं अच्छी और लुभावनी होती हैं. उन्होंने पीठ से आधार के खिलाफ याचिकाकर्ताओं द्वारा फैलाए गए हाइपर फोबिया पर गौर नहीं करने का आग्रह किया.
Post A Comment:
0 comments so far,add yours