नई दिल्ली I ब्रह्मोस मिसाइल जल्द ही ध्वनि की गति से सात गुना की रफ्तार से दुश्मन पर कहर बरपाने की क्षमता हासिल कर लेगी. दुनिया की सबसे तेज गति की सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस उन्नत इंजन के साथ 10 साल में हाइपरसोनिक क्षमता से लैस हो जाएगी और मैक-7 (ध्वनि की गति की सात गुना की सीमा) को पार कर लेगी.
इस मिसाइल को भारत-रूस ने मिलकर विकसित किया है. भारत और रूस की संयुक्त उपक्रम कंपनी ब्रह्मोस एयरोस्पेस के मुख्य कार्यकारी एवं प्रबंध निदेशक सुधीर मिश्रा ने कहा , ‘‘हाइपरसोनिक मिसाइल प्रणाली बनाने में अभी से 7-10 साल लगेंगे.’’ अभी इसकी रफ्तार ध्वनि की गति की 2.8 गुना है.
सुधीर मिश्रा ने कहा कि ब्रह्मोस मिसाइल इंजन सुधार के साथ कुछ ही समय में मैक-3.5 और तीन साल में मैक-5 गति हासिल कर लेगी. हाइपरसोनिक गति के लिए मौजूदा इंजन को बदलना होगा. हमारा मकसद ऐसी मिसाइल विकसित करना है, जो अगली पीढ़ी के हथियार को ढोने में सक्षम हो. उन्होंने कहा कि रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ), भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय विज्ञान संस्थान जैसे भारतीय संस्थान उस तकनीक पर काम कर रहे हैं, जिससे ब्रह्मोस की रफ्तार को ध्वनि की गति से सात गुना ज्यादा बढ़ाया जा सके. रूस के संस्थान भी इस काम में जुटे हुए हैं.
समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक इस संयुक्त उपक्रम में डीआरडीओ की हिस्सेदारी 55 प्रतिशत और रूस की 45 फीसदी है. सुधीर मिश्रा ने कहा कि कंपनी के पास इस समय 30 हजार करोड़ रुपये के आर्डर हैं. पिछले कुछ वर्षों में मिसाइल प्रणाली को इस तरह से बेहतर किया गया है कि इसे जहाज, पनडुब्बी, सुखोई-30 जैसे युद्धक विमान और जमीन से दागा जा सकता है. उन्होंने दावा किया कि ब्रह्मोस अपनी प्रतिस्पर्धी मिसाइलों से प्रौद्योगिकी के मामले में 5-7 साल आगे है.
मिश्रा ने कहा, ‘‘यह अभी दुनिया की सबसे तेज क्रूज मिसाइल है. अमेरिका समेत किसी भी देश के पास ऐसी मिसाइल प्रणाली नहीं है.’’ उन्होंने कहा कि ब्रह्मोस के इंजन और लक्ष्य खोजने की प्रणालियां रूस द्वारा विकसित की गई हैं, जबकि भारत ने सॉफ्टवेयर, एयरफ्रेम और फायर कंट्रोल को नियंत्रित करने वाली प्रणालियों को विकसित किया है. उन्होंने कहा कि यह मिसाइल प्रौद्योगिकी अब अगले 25-30 साल तक प्रासंगिक रह सकेगी. इसमें उच्च शक्ति के लेजर और माइक्रोवेव ऊर्जा वाले शस्त्र लगे होंगे.
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