चाइना और पाकिस्तान की दोस्ती अटूट है और यह सोचना कि भारत की कोशिशें चीन और पाकिस्तान को दूर कर सकती हैं, गलतफहमी होगी. चीन नहीं चाहता कि पूरे साउथ एशिया में उसे कोई चुनौती दे सके. हालांकि, इस रीजन में भारत, जापान, इंडोनेशिया और वियतनाम ऐसी चार ताकतें हैं जो चीन के लिए चिंता पैदा करते हैं.
1979 में वियतनाम के साथ चीन का युद्ध हुआ. हालांकि, इसके नतीजे चीन के लिए उत्साहित करने वाले नहीं थे. इससे चाइना को बड़ा सबक मिला. इसी तरह से साउथ चाइना सी को लेकर इंडोनेशिया से चीन के मतभेद हैं. पूरी दुनिया साउथ चाइना सी में चीन की गतिविधियों से चिंतित है.
चीन से सीधी लड़ाई से परहेज
चीन से चिंतित होने के बावजूद कोई भी देश उससे आमने-सामने की टक्कर नहीं करना चाहता है. जापान हालांकि, खुलकर सामुद्रिक सीमाओं को लेकर चीन का विरोध करता है. चीन भी जापान की ताकत को समझता है. भले ही चीन के पास ज्यादा बड़ी सेना है, लेकिन जापान तकनीकी रूप से बेहद आगे है और उसकी तकनीकी क्षमताएं अमेरिका के बराबर हैं.
भारत विरोधियों को बढ़ावा देता है चीन
चाइना की हमेशा से मंशा साफ रही है. वह भारत को किसी भी हालत में साउथ एशिया में घेरना और सीमित रखना चाहता है. वह पड़ोसी देशों में भारत विरोध को बढ़ावा देता है. हालिया मामले में मालदीव का उदाहरण देखा जा सकता है. उसके इस काम में पाकिस्तान उसका बड़ा मददगार साबित होता है.
पाकिस्तान को हथियारों की तकनीक, डिजाइन सबकुछ चीन मुहैया कराता है. पाकिस्तान को प्लूटोनियम बनाने की क्षमता चीन से ही हासिल हुई है. पाकिस्तान के एटमिक हथियारों के डिजाइन और टेक्नोलॉजी चीन की मुहैया कराई हुई है.
हिंदी-चीनी भाई-भाई का अति-उत्साह ठीक नहीं
मिसाइट टेक्नोलॉजी कंट्रोल रीजन में भारत के दाखिले पर चीन ने अड़ंगा लगाने की पूरी कोशिश की और इसके पीछे वजह सिर्फ पाकिस्तान है. ऐसे में हमें सतर्क रहना होगा. चीन से दोस्ती के नाम पर ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें सावधानी से बीजिंग के साथ संबंधों को कायम रखना होगा.
दूसरी बात, चाइना के साथ सख्ती की भाषा अपनाने की जरूरत नहीं है. चाइना जानता है कि भारत कितना शक्तिशाली है. 1987 में उन्होंने भारत के साथ अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू वैली में हरकत करने की कोशिश की. हालांकि, यह स्टैंडऑफ लंबे वक्त तक चला, लेकिन चीन ने भारत के साथ युद्ध करने की कोशिश नहीं की. इसके बाद हालिया मामला डोकलाम का देखने को मिला.
हमें यह समझना होगा कि चीन की ओर से ये सब चीजें चलती रहेंगी.
चीन की पूरी रणनीति भारत को घेरने की है. वह भारत को आर्थिक तौर पर भी घेरना चाहता है. पड़ोसी मुल्कों को भारी कर्जे देकर उन्हें अपने दबाव में ला रहा है. श्रीलंका में हम ऐसा देख चुके हैं. पाकिस्तान में भी चीन भारी निवेश कर रहा है. ग्वादर पोर्ट और सीपेक के जरिए पूरे पाकिस्तान तक चीन की पहुंच हो गई है.
हमें क्या करना चाहिए?
भारत को जापान, इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे देशों के साथ संबंध मजबूत करने होंगे. इसके अलावा फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी चीन को लेकर आशंकित हैं. हमें इन देशों के साथ भी रिश्ते मजबूत करने होंगे. कारोबार के मोर्चे पर हमें चीन के अलावा दूसरे विकल्प तलाशने होंगे. मगर यह सब कूटनीति के जरिए करना होगा.
चीन के साथ संबंध रखना अच्छा है. उनके साथ कॉन्टैक्ट बनाए रखना जरूरी है ताकि किसी भी छोटी-मोटी घटना नियंत्रण से बाहर न चली जाए. इस लिहाज से भारत और चीन के बीच कई स्तरों पर बातचीत होती रहती है और यह अच्छा है. लेकिन, इससे ज्यादा ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ जैसे अति-उत्साह से साफतौर पर बचना होगा. चीन से दोस्ती रहे, लेकिन उसे यह भी स्पष्ट रहे कि हम उसका सामना करने को भी हमेशा तैयार हैं. चीन को शांति के साथ यह रणनीति समझाने की जरूरत है.
1979 में वियतनाम के साथ चीन का युद्ध हुआ. हालांकि, इसके नतीजे चीन के लिए उत्साहित करने वाले नहीं थे. इससे चाइना को बड़ा सबक मिला. इसी तरह से साउथ चाइना सी को लेकर इंडोनेशिया से चीन के मतभेद हैं. पूरी दुनिया साउथ चाइना सी में चीन की गतिविधियों से चिंतित है.
चीन से सीधी लड़ाई से परहेज
चीन से चिंतित होने के बावजूद कोई भी देश उससे आमने-सामने की टक्कर नहीं करना चाहता है. जापान हालांकि, खुलकर सामुद्रिक सीमाओं को लेकर चीन का विरोध करता है. चीन भी जापान की ताकत को समझता है. भले ही चीन के पास ज्यादा बड़ी सेना है, लेकिन जापान तकनीकी रूप से बेहद आगे है और उसकी तकनीकी क्षमताएं अमेरिका के बराबर हैं.
भारत विरोधियों को बढ़ावा देता है चीन
चाइना की हमेशा से मंशा साफ रही है. वह भारत को किसी भी हालत में साउथ एशिया में घेरना और सीमित रखना चाहता है. वह पड़ोसी देशों में भारत विरोध को बढ़ावा देता है. हालिया मामले में मालदीव का उदाहरण देखा जा सकता है. उसके इस काम में पाकिस्तान उसका बड़ा मददगार साबित होता है.
पाकिस्तान को हथियारों की तकनीक, डिजाइन सबकुछ चीन मुहैया कराता है. पाकिस्तान को प्लूटोनियम बनाने की क्षमता चीन से ही हासिल हुई है. पाकिस्तान के एटमिक हथियारों के डिजाइन और टेक्नोलॉजी चीन की मुहैया कराई हुई है.
हिंदी-चीनी भाई-भाई का अति-उत्साह ठीक नहीं
मिसाइट टेक्नोलॉजी कंट्रोल रीजन में भारत के दाखिले पर चीन ने अड़ंगा लगाने की पूरी कोशिश की और इसके पीछे वजह सिर्फ पाकिस्तान है. ऐसे में हमें सतर्क रहना होगा. चीन से दोस्ती के नाम पर ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है, बल्कि हमें सावधानी से बीजिंग के साथ संबंधों को कायम रखना होगा.
दूसरी बात, चाइना के साथ सख्ती की भाषा अपनाने की जरूरत नहीं है. चाइना जानता है कि भारत कितना शक्तिशाली है. 1987 में उन्होंने भारत के साथ अरुणाचल प्रदेश के सुमदोरोंग चू वैली में हरकत करने की कोशिश की. हालांकि, यह स्टैंडऑफ लंबे वक्त तक चला, लेकिन चीन ने भारत के साथ युद्ध करने की कोशिश नहीं की. इसके बाद हालिया मामला डोकलाम का देखने को मिला.
हमें यह समझना होगा कि चीन की ओर से ये सब चीजें चलती रहेंगी.
चीन की पूरी रणनीति भारत को घेरने की है. वह भारत को आर्थिक तौर पर भी घेरना चाहता है. पड़ोसी मुल्कों को भारी कर्जे देकर उन्हें अपने दबाव में ला रहा है. श्रीलंका में हम ऐसा देख चुके हैं. पाकिस्तान में भी चीन भारी निवेश कर रहा है. ग्वादर पोर्ट और सीपेक के जरिए पूरे पाकिस्तान तक चीन की पहुंच हो गई है.
हमें क्या करना चाहिए?
भारत को जापान, इंडोनेशिया, वियतनाम जैसे देशों के साथ संबंध मजबूत करने होंगे. इसके अलावा फ्रांस और जर्मनी जैसे देश भी चीन को लेकर आशंकित हैं. हमें इन देशों के साथ भी रिश्ते मजबूत करने होंगे. कारोबार के मोर्चे पर हमें चीन के अलावा दूसरे विकल्प तलाशने होंगे. मगर यह सब कूटनीति के जरिए करना होगा.
चीन के साथ संबंध रखना अच्छा है. उनके साथ कॉन्टैक्ट बनाए रखना जरूरी है ताकि किसी भी छोटी-मोटी घटना नियंत्रण से बाहर न चली जाए. इस लिहाज से भारत और चीन के बीच कई स्तरों पर बातचीत होती रहती है और यह अच्छा है. लेकिन, इससे ज्यादा ‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’ जैसे अति-उत्साह से साफतौर पर बचना होगा. चीन से दोस्ती रहे, लेकिन उसे यह भी स्पष्ट रहे कि हम उसका सामना करने को भी हमेशा तैयार हैं. चीन को शांति के साथ यह रणनीति समझाने की जरूरत है.
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