नई दिल्ली I 17वीं शताब्दी के ऐतिहासिक धरोहर दिल्ली स्थित लाल किले को डालमिया ग्रुप को सौंपे जाने की खबर सोशल मीडिया के साथ-साथ राजनीतिक पटल पर भी अचानक तेजी से छा गई. लोगों ने सोशल मीडिया पर कहा कि मोदी सरकार ने लाल किले को बेच दिया और अब अगली बारी ताजमहल की है. वहीं कांग्रेस, आरजेडी, आम आदमी पार्टी, पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी समेत तमाम विपक्षी दलों और नेताओं ने मोदी सरकार को निशाने पर लिया और कहा कि सरकार ऐतिहासिक इमारतों को उद्योगपत्तियों को बेच रही है. इस मामले ने एक नई बहस छेड़ दी.
यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि ऐतिहासिक धरोहरों को लेकर देश में कानून क्या है, इनकी देखरेख कौन करता है और क्या कोई सरकार चाहे तो ऐतिहासिक धरोहरों को किसी को बेच सकती है? हम यहां इन सारे सवालों के जवाब देने की कोशिश कर रहे हैं.
लाल किले को लेकर क्या हुआ है फैसला?
दरअसल पर्यटन मंत्रालय, आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया और डालमिया भारत समूह के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर किये गये. जिसके तहत कंपनी को पांच साल के लिए लाल किला और इसके आस पास के पर्यटक क्षेत्र के रख-रखाव और विकास की जिम्मेदारी मिल गई. संस्कृति मंत्री महेश शर्मा कहते हैं- ऐतिहासिक धरोहरों के रखरखाव में जनता की भागीदारी बढ़े इसके लिए पिछले साल पर्यटन मंत्रालय और संस्कृति मंत्रालय ने पुरातत्व विभाग के साथ मिल कर एक योजना शुरू की थी जिसका नाम है- एडॉप्ट ए हेरिटेज योजना. इसके तहत कोई भी भारतीय किसी धरोहर को गोद ले सकता है. कई कंपनियों ने इसके लिए आवेदन दिया था और उन्हीं के आधार पर ये फैसला हुआ."
लाल किले में क्या करेगी कंपनी?
इस योजना के तहत डालमिया ग्रुप लाल किला को पर्यटकों के बीच और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए काम करेगा. साथ ही उसके सौंदर्यीकरण, रखरखाव की जिम्मेदारी उसकी होगी. समझौते के तहत ग्रुप को छह महीने के भीतर लाल किले में जरूरी सुविधाएं मुहैया करानी होगी. इसमें एप बेस्ड गाइड, डिजिटल स्क्रिनिंग, फ्री वाईफाई, डिजिटल इंटरैक्टिव कियोस्क, पानी की सुविधा, टेक्टाइल मैप, टॉयलेट अपग्रेडेशन, रास्तों पर लाइटिंग, बैटरी से चलने वाले व्हीकल, चार्जिंग स्टेशन, सर्विलांस सिस्टम, कैफेटेरिया आदि शामिल है.
25 करोड़ की बात कितनी सच?
ये बातें भी चर्चा में आईं कि पांच साल के लिए डालमिया ग्रुप से 25 करोड़ की डील हुई है. संस्कृति मंत्री महेश शर्मा इसे गलत बताते हैं और कहते हैं- "मुझे नहीं पता ये आंकड़ा कहां से आया क्योंकि पूरे समझौते में पैसों की कोई बात है ही नहीं. 25 करोड़ तो दूर की बात है, 25 रुपये क्या इसमें 5 रुपये तक की भी बात नहीं है. ना कंपनी सरकार को पैसे देगी ना ही सरकार कंपनी को कुछ दे रही है."
क्या बदलेगा लोगों के लिए?
इसपर संस्कृति मंत्री कहते हैं- इमारत के किसी हिस्से को कंपनी छू नहीं सकती है और इसके रखरखाव का काम पूरी तरह पहले की तरह पुरातत्व विभाग ही करेगा. जैसा पहले पुरातत्व विभाग टिकट देता था व्यवस्था वैसी ही रहेगी और बस पर्यटकों के लिए सुविधाएं बढ़ जाएंगी.
वहीं कंपनी का कहना है कि कंपनी सीएसआर इनिशिएटिव यानी कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व निभाने के काम के जरिए इनका रखरखाव करने और पर्यटकों के लिए शौचालय, पीने का पानी, रोशनी की व्यवस्था करने और क्लॉकरूम आदि बनवाने के लिए अनुमानित 5 करोड़ प्रतिवर्ष खर्च करेगी
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