नई दिल्ली । दिल्ली में केजरीवाल सरकार के करीब-करीब तीन वर्ष पूरे होने को हैं। 14 फरवरी को दिल्ली सरकार के तीन वर्ष पूरे हो जाएंगे। एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी सरकार के तीन वर्ष की अवधि पूरे होने पर जश्न की तैयारी में जुटी है वहीं, चार विशेष संकटों ने केजरीवाल की रात की नींद गायब कर दी है। इन संकटों ने केजरीवाल सरकार के इस जश्न में कहीं न कही रंग में भंग डाल दिया है। आइए जानते हैं केजरीवाल के चार प्रमुख संकट।
1- सीलिंग पर रार, सहमी आप
सीलिंग मामले में इन दिनों भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी के बीच घमासान मचा है। दोनों ही सीलिंग की ज़िम्मेदारी एक दूसरे पर डालकर व्यापारियों और आम जनता के गुस्से से बचना चाहते हैं। लेकिन आम आदमी को इस पर राजनीति से नहीं मतलब है उसे सिर्फ राहत चाहिए। यह गुस्सा आप सरकार पर भारी पड़ सकता है, केजरवील यह जानते हैं कि अगर यह गुस्सा आप पर निकला तो उसे भारी नुकसान हो सकता है। क्यों कि दिल्ली में आप की सरकार है। बाकी दल इस गुस्से को भुनाने में लगे हैं। भाजपा ने इसी रणनीति के तहत आप सरकार पर हमला तेज कर दिया है। भाजपा को लगता है यह एक सुनहरा अवसर है जब दिल्ली सरकार को कटघरे में खड़ाकर लोगों की सहानुभूति ली जा सकती है।
आप सरकार अभी इस मामले में सुरक्षात्मक रवैया अपना रही है, लेकिन अब यह बात उसके समझ में आ गई है कि यह नीति उस पर उलटी पड़ सकती है। सारा मामला केंद्र और उपराज्यपाल पर डालकर समस्या से आंख नहीं मूंदा जा सकता है। यही कारण है केजरवील ने इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला किया है। केजरीवाल को लगता है इस पर सियासत से काम नहीं बनेगा। सुप्रीम कोर्ट के पाले में गेंद डालकर वह इस मामले को राजीनति से अलग करना चाहते हैं।
2- लाभ के पद मामले में सांसत में केजरीवाल
राष्ट्रपति द्वारा अयोग्य ठहराए गए 20 आप विधायकों को उनके ही निर्वाचन क्षेत्रों में सहानुभूति नहीं मिल रही है। राष्ट्रपति द्वारा अयोग्य ठहराए गए सभी विधायक जनता का नब्ज भांपते हुए उपचुनाव में जाने से बच रहे हैं। जानकारों का मानना है कि पिछले पांच सालों में यह पहला मौका है जब पार्टी में विवाद होने के बाद जनता की तरफ से भी पार्टी को सहानुभूति नहीं मिल रही है। केजरीवाल के लिए यह चिंता का विषय है। आप को उम्मीद थी कि वह जनता की सहानुभूमि अर्जित कर लेंगे, लेकिन जनता ने इस पर उनको ठेंगा दिखा दिया।
केजरीवाल को यह बात समझ में आ गई कि इस पर भी सियासत ठीक नहीं है। यही कारण है कि इस मामले में भी आप ने कोर्ट की शरण में जाना ज्यादा उचित समझा। मामला अदालत में पहुंचा। 'लाभ का पद' मामले में अयोग्य ठहराए गए आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों के मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की डबल बेंच सुनवाई करेगी। इन विधायकों ने अपनी सदस्यता रद्द किए जाने को हाई कोर्ट में चुनौती दी है।
हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को दिए अपने उस अंतरिम आदेश को भी बरकरार रखा है, जिसमें याचिका की अगली सुनवाई तक उप चुनावों का ऐलान नहीं किया गया था। गौरतलब है कि पिछली सुनवाई में दिल्ली हाई कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में उप चुनावों के ऐलान पर अगली सुनवाई तक रोक लगा दिया था। अब अगली सुनवाई तक चुनाव आयोग उप चुनाव का ऐलान नहीं कर सकता है।
3- केजरीवाल की छवि को लगा धक्का
अभी कुछ दिन पहले ही दिल्ली की तीन राज्यसभा सीटों को लेकर पार्टी में काफी बवाल कटा था। उम्मीदवारों को लेकर पार्टी को बाहर और अंदर विरोध का सामना करना पड़ा था। इससे अरविंद केजरीवाल की छवि को काफी नुकसान पहुंचा है। पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से एक कवि कुमार विश्वास ने खुलकर पार्टी नेताओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। कुमार विश्वास प्रकरण अभी भले ही खत्म होता प्रतीत होता हो लेकिन पार्टी में आतंरिक गुटबाजी बढ़ी है।
इतना ही नहीं दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष मनोज तिवारी ने केजरीवाल पर हमला बोलते हुए कहा कि आप ने उच्च सदन चुनाव के लिए दो व्यवसायियों को नामांकित कर लोगों को धोखा दिया है। स्वारज पार्टी के योगेंद्र यादव ने कहा कि आप ने सुशील गुप्ता के साथ वित्तीय सौदा किया है।
4- एक सर्वे रिपोर्ट से सहमे केजरीवाल
दिल्ली में अगले विधानसभा चुनाव 2020 में होंगे। लेकिन, इससे पहले ही अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी को लेकर रिपोर्ट्स सामने आने लगी है। रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि जिस तरह से दिल्ली सरकार चल रही है और विवादों में घिरती जा रही है, उससे 2020 में उसका हाल कांग्रेस जैसा हो सकता है। यानी केजरीवाल को अगले चुनाव में मुंह की खानी पड़ सकती है।
दरसअल, अभी कुछ दिनों पहले ही आम आदमी पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा ने दावा किया था कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की बीस सीटों पर एक आंतरिक सर्वे कराया है। जिसमें लगभग सभी सीटों पर AAP की हालात खराब है। यानी इन सीटों पर अगर उपचुनाव होते हैं तो आम आदमी पार्टी के विधायक रहे नेता दोबारा विधानसभा पहुंचेगे इस बात की कोई गारंटी नहीं है। अरविंद केजरीवाल को इस बात का डर है कि अगर उपचुनाव में करारी शिकस्त हुई तो इसका असर 2020 के विधानसभा चुनाव में भी पड़ेगा। दिल्ली की जनता केजरीवाल और उपराज्यपाल के बीच अकसर झगड़ा देखती रहती है।
रिपोर्ट्स में ये दावा किया गया है कि दिल्ली की जनता को भी ये लगने लगा है कि अरविंद केजरीवाल कानून के मुताबिक नहीं चलना चाहते हैं। वो कई मसलों पर जानबूझकर विवाद खड़ा करते हैं ताकि इसका उन्हें राजनीतिक फायदा मिल सके।
रिपोर्ट्स के मुताबिक पांच साल में पहली बार ऐसा देखने को मिला रहा है कि अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के साथ दिल्ली की जनता की सहानुभूति नहीं है। इस बात की जानकारी अरविंद केजरीवाल को भी है। शायद यही वजह है कि आम आदमी पार्टी नहीं चाहती है कि दिल्ली में बीस सीटों पर उपचुनाव हों। इसीलिए उसने इस मामले में अदालत का दरवाजा खटखटाया है।
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